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(१२) या ग्रंथ पाटलीपुत्रनां निवासी परमाईती श्री सुहंसी नामनी श्राविकाना श्राग्रहथी श्रमोए विद्याप्रवादपूर्वमाथी उकरीने तेने माटे रच्यो बे.
था ग्रंथमां वर्णवेलां लक्षणो वांचीने कोइए पण अकार्य करवामां प्रवर्त्त नहीं, एवी श्रमारी साझा बे. तेम था ग्रंथ को अर्ध विदग्धना हाथमां था. चार्योए पण आपवो नहीं, एवी अमारी श्राझा बे.
था ग्रंथनी प्रथम प्रति चौद पूर्वधारी श्रीनबाहुस्वामिनी श्राज्ञाथी महामुनि श्री स्थूलजजीए नेपालदेशनी नईकरा नामनी नगरीमा लखी.
ते उपरथी पाटलीपुत्रना निवासी श्रीमुख नामना श्रावके लखावी. ते उपरथी परमाईत श्रीकुमारपाल राजानी आझाथी कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचंदाचार्ये पोताना परम विश्वासु शिष्य पासे तामपत्र पर लखावी, तथा ते था प्रति श्रीकुमारपाल राजाए पो.. ताना गंडारमा महोत्सवपूर्वक धारण करी.
(श्रीहेमचंड श्राचार्य था प्रतना देखा पत्रमा पोतानाज हस्ताक्षरथी लखे जे के) इदं सामुजिकशास्त्रं यात्रार्थ गतेन मया मरुजूमौ श्रीजेसलमीरनाम्नो नगरस्य जैनपुस्तकालयमध्यगत
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