SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 180
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १७८ ) उज दान देतो हतो; अने जैन याचको पर द्वेष राखीने तेने दरमान पण तुं आपतो नहोतो. एक दहाडो सत्यवादन राजानी सजामां बे जैन गंधर्वो वीने मधुर स्वरथी अरिहंत प्रजुना गुणो गावा लाग्या; तेर्जनी संगीतकला साधारण प्रकारनी हती; पण राजाए तेमने पोताना स्वधर्मी जाणीने खुशी यइने दश हजार सोनामोहोरो आपवानुं तने कयुं, पण तने जैनी पर द्वेष होवाथी तें राजाने प्रचन्न रीते कह्युं के हे स्वामिन्! श्राप आजे श्र बन्ने जने दश हजार सोनामोहोरो ज्यारे आपशो, त्यारे तो हवे एवा घणा माणसो यहीं चावीने खोटो कोल करी जिननी स्तुतिनां गायनो गाइने तमारी पासेथी घणुं द्रव्य लइ जशे; धने एवी रीते तो आपणो सघलो जंकार पण खाली थइ जशे; ते सांजली राजाए विचार्य के प्रधान ठीक सलाह पेबे, तेथी तेणे गंधर्वोने कह्युं के तमो आवती काले आवजो; ते सांजली गंधर्वो तो नमस्कार करी चाया गया. पी सजा विसर्जन यया बाद तें सजाना दरवाजा पर रहेला नोकरने दुकम कर्यो के यावती काले या गंधर्वो जो अहीं खावे, तो तेमने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org P
SR No.003684
Book TitleSamudrik Shastranu Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1914
Total Pages226
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy