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________________ ( १99 ) जोगवां पडे बे, तेमां कशो पण संदेह नथी. एम मानी मनमां खेद लाव्या विना ते पोताना दिवसो गरीबी हालतथी काढवा लाग्यो. एटलामां तेज नगरमां गुप्ताचार्य नामे ज्ञानी महाराज पधार्या; नगरना जविक लोको तेमने वांदवा माटे गया; तेनी साथै सुदत्त शेठ पण गयो. आचार्य महाराजे केटलोक धर्मोपदेश कह्यो; ते सांजा बाद सर्वनी समक्ष सुदत्त शेठे हाथ जोमीने आचार्य महाराजने विनंति करी के हे प्रनो ! में पूर्वे एवं कयुं अंतरायकर्म उपार्जन कर्यु बे ? के जेथी मारी संपत्तिनो विनाश थयो बे. ते सांजली आचार्य महाराजे कयुं के हे सुदत्त ! पूर्व नवे क नामना देशमां जड़ावती नामनी नगरीमां तुं सत्यवादन नामना राजानो पुमाल नामे मंत्री हतो; तुं मिथ्यात्वीनो धर्म पालतो हतो, अने सत्यवादन राजा परम जैनी हतो; तारो स्वभाव परोपकारी हतो; तेथी परने उपकार करवामां तारुं मन यतिशय खेंचातुं हतुं; तं तारुं पोतानुं द्रव्य खरचीने केटलीक दानशाला करावी हती, केलांक पाणीनां नवाणी कराव्यां इतां; पण तुं सघला मिध्यात्वी १२ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003684
Book TitleSamudrik Shastranu Gujarati Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1914
Total Pages226
LanguageGujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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