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(७३) और डैढ दिन जूठ खरेरी॥
मेरी ॥१॥ एती तो हुँ जानुं निदचे, रीरी पर न जरा जरेरी॥ जब अपनो पद आप संजारत, तब तेरे परसंग परेरी मेरीश औसर पाइ अध्यातम शैली, परमातम निज योग धरेरी॥ शक्ति जगावे निरुपम रूपकी, आनंदघन मिलि केलि करेरी॥
॥ मेरी ॥३॥
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