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(30) चंदन कदा लावे दो ॥ अनल न विरदानल ये है, तन ताप बढावे दो।पीया॥॥ फागुन चाचर इक निसा, होरी सिरगानी दो॥ मैरे मन सब दिन जरे, तन खाख उडानी हो।पी। समता मदेव बिराज है, वाणी रस रेजा दो ॥ बलि जालं आनंदघन प्रनु, ऐसें नितुरनव्देजादोपी
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