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यातुर चातुरता नहीं रे, सुनि समता टुंक वात, आनंदघन प्रभु प्राय मिले प्यारे, आज घरे दर जात॥मि०॥ ॥
॥ पद चोत्रीशभुं ॥ राग गोडी ॥ देखो खाली नट नागरको सांग ॥ दे० ॥
और दी और रंग खेलत तातें, फीका लागत अंग ॥ दे० ॥२॥ औरद तो कहा दीजे बहुत कर, जीवित है इद ढंग ||
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