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(५४) ॥पद बत्रीशमुं॥राग सामेरी॥ नितुर नये क्युं ऐसें,पीया तुम॥
नितुर ॥ए आंकणी॥ में तो मन वच क्रम करी रानरी, राउरी रीत अनेसे ॥ नि॥२॥ फूले फूले नमर कैसीनांजरीनरतहुँ, निवदे प्रीत क्युं ऐसें ॥ में तो पीयुतें ऐसी मलि आली, कुसुम वास संग जैसे निकाशा ऐगी जान कदा परे एती, नीर निवदीये सें॥
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