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(५३) उत माया काया कबन जात, यह जड तुम चेतन जग
विख्यात ॥ उत करम नरम विषवेलि संग, इत परम नरम मति मेलि रंग॥
कित० ॥३॥ उत काम कपट मद मोह मान, इतकेवल अनुनव अमृतपान।।
आलि कहे समता उत दुःख अनंत,श्त खेलेआनंदघन वसंत॥
कित ॥३॥
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