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(३६) नित्य अबाधितगौन ॥नि॥३॥ सर्वांगी सब नयधनी रे, माने सब परमान॥ नयवादी पल्लो ग्रही प्यारे, करेलराश्ठान॥निशा॥४॥ अनुन्नव अगोचर वस्तु दे रे, जाणवो श्द इलाज॥ कहन सुननको कबु नहीं प्यारे, आनंदघन महाराजाना ॥ ॥ पद बावीशमुं॥राग गोडी ॥ विचारी कहा विचारे रे,
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