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(३४) उपजीज्योत उद्योत घट त्रिनुवन, आरसी केवल कारी॥
__ अ०॥४॥ नपजीधुनी अजपाकी अनदद, जीतनगारे वारी॥ फडी सदा आनंदघन बरखत, बिन मोर एकनतारीअाया ॥पद एकवीशमुंगराग गोमी॥ निशानी कहा बताईं रे, तेरो अगम अगोचर रूप ॥
निशानी॥ए आंकणी॥
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