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(३३) कीनी निज अंगचारी ॥१॥ प्रेम प्रतीत राग रुचि रंगत, पहिरे जीनी सारी॥ महिंदी नक्ति रंगकी राची, नाव अंजन सुखकारी॥अश सहज सुनाव चूरी मैं पेनी, थिरता कंकन नारी॥ ध्यान उरवसी जरमें राखी, पियगुनमालाधारी॥३॥ सुरत सिंदर मांग रंग राती, निरतें वेनी समारी॥
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