________________
मोदन गुन रोदन गति सोदन, मेरी वैरन ऐसें नितुर लिखावे
॥परम ॥१॥ चेतन गात मनात न एतें, मूल वसात जगात बढावे ॥ कोन न दूती दलाल विसीठी, पारखी प्रेम खरीद बनावे
॥परम ॥३॥ जांघ उघारी अपनी कदा एते, विरदजार निस मोदी सतावे॥ एती सुनी आनंदघन नावत,
Jain Educationa Interati@ersonal and Private Usev@mw.jainelibrary.org