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(१६) आप विगुंचण जगकी दासी, सियानप कौन बतासी॥ निजजन सुरिजन मेला ऐसा, जैसा दूध पतासीनाथाशा ममता दासीअदितकरी दर विधि, विविध नांति संतासी॥ आनंदघन प्रजु विनति मानो, औरन दितुसमतासीनाथ॥३
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॥पद दशमुं॥राग टोडी॥ परम नरममति औरनआवेोप॥
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