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पति वंसे कुसय बोध न दीपत जानु प्रकासे । नमे नय नेह नितु साहिब एह धर्म जिद त्रिजग प्रकासे ॥ १५ ॥ सोलमा जिद नामे शांति होय गमोगमे सिद्धि होइ सर्व कामे नाम प्रभावथे । कंचन समान वान चालीस धनुष मान चक्र प्रतिको जिधान दीपतो ते सूरथे । चौद रयण समान दीपता नवय निधान करत सुरेंद्र गान पुण्यके प्रजावथे | कहे नय जोमी हाथ
बहु थयो सनाथ पाइने सुमति साथ शांतिनाथ के दिदार ||१६|| कहे कुंशु जिणंद दयाल मयाल निधि सेवकनी अरदास सुणो । जव जीम महार्णव पूर अगाह - थाह उपाधि सुनीर घणो । बहु जन्म जरा मरणादि विज्ञाव निमिस घणादि कलेस
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