________________
( ३४ए ) ढोलो बुधफेन पिंक उजलो कपूरखंग अमृत सरस कुंम शुद्ध जाको तुंग हे । सुधावीजी नंद संत कीजीये कर्म अंत शुन नक्ति जास दंत श्वेत जाको वाण हे ॥ कहे नय सुणो संत पूजीये जो पुष्पदंत पामीये तो सुख संत शुद्ध जाको ध्यान हे ॥ ए॥ सीतल सीतल वाणी घनाघन चाहेत हे नविकोककिसोरा । काक जिणंद प्रजासु नरिंद वली जिम चाहत चंद चकोरा ॥ विध गयंद सुचि सुरिंद सति निज कंत सुमेघ मयुरा । कहे नय नेह धरी गुण गेह तथा धावत साहेब मेरा ॥१०॥ विष्णु नूपको मटहार जगजंतु सुखकार वंशको शृंगारहार रूपको अंगार हे । गेमी सवि चित्तकार मान मोहको विकार काम को
-
-
Jain Educationa Interati@ersonal and Private Usev@mw.jainelibrary.org