________________
(३४) घणो॥ मुनीश्वर रूप अनोपमजूप अकल स्वरूप जिनंद तणो । कहे नय खेम धरी बहु प्रेम नमे नर पावत सुख घणो॥४॥ मेघ नरिंदं मलार विराजित सोवनवान समान तनु । चंद सुचंद वदन सुहावत रूपविगर्जित कीम तनु । कर्मकी कोम सवे दुःख बगेम नमे कर जोम करीनगति।वंशश्याग विजूषण साहिब सुमति जिनंद गए मुगति ॥ ५॥ हंसपाद तुट्य रंग रति अर्ध रागरंग अढीसें धनुष चंग देहको प्रमाण हे । उगतो दिणंद रंग लाल केसु फुल रंग रूप हे अनंग नंग अंग केरो वान हे ॥ गंगको तरंग रंग देवनाथहि अजंग ज्ञानको विसाल रंग शुद्ध जाको ध्यान हे । निवारीए क्लेश संग पद्मप्रनु स्वामी धींग दीजीए
Jain Educationa Interratiersonal and Private Usevanjainelibrary.org