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थाय श्री आदि जिनं ॥ १॥ अजित जिणंद दयाल मयाल विसाल नयन कृपाल जुगं । अनोपम गाल महामृग चाल सुनाल सुजानग बाहु जुगं ॥ मनुष्य मेली ह मुनिसरसिंह
बीह नरीह गये मुगति । कहे नय चित्त धरी बहु जति नमे जिननाथ जली जुगति ॥ ॥ २ ॥ कहे संजवनाथ अनाथको नाथ मुगतिको साथ मिल्यो प्रभु मेरो । जवोदधिपाज गरीब नवाज सबे शिरताज निवारत फेरो ॥ जितारीको जात सुसेना मात नमे नर जात मिली बहु घेरो | कहे नय शुद्ध धरी बहु बुद्ध जिनावन नाथकुं सेवक तेरो ॥ २ ॥ अजिनंदन स्वाम लीधे जस नाम सरे सवि कामजविक तणो ॥ वनिता जस गाम निवासको वाम करे गुणग्राम नरिंद
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