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ए खग चातुक केरी बडाइ ॥
बा० ॥ १ ॥
जलत निःशंक दीपके मांदि, पीर पतंगकूं दोत के नांदि ॥ पीडा तदपण तिदां जदि, शंक प्रीतिवश यानत नांदि ॥
ला० ॥ ५ ॥
मीन मगन नवि जलथी न्यारा, मान सरोवर दंस आधारा ॥ चोर निरख निशि प्रति अंधि
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