________________
(३२६) यारा, केकी मगन फुन सुन गर
जारा ॥ला०॥३॥ प्रणवध्यान जिम योगीपाराधे, रस रीति रससाधक साधे॥
अधिक सुगंध केतकीमें लाधे, मधुकर तस संकट नविवाधे ॥
ला ॥४॥ जाका चित्त जिहां थिरता माने, ताका मरम तो तेहिज जाने ॥ जिननक्ति दिरदयमें गने,
Jain Educationa Inteffatilesonal and Private Usevenky.jainelibrary.org