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(३१) नाटक प्रजुकू देखाउंगी॥
सु०॥४॥ चिदानंद प्रज्जु प्राणजीवनकं, मोतियन थाल वधानंगी॥
सु० ॥५॥ ॥पद चोसम्मुं॥ ॥अजित जिणंदशुं प्रीतडी ॥
ए देशी॥ ॥अजित अजित जिन ध्याश्य,
धरी हिरदे होनविनिर्मलध्याना __हृदय सरीजामें रह्यो,
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