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(३०५) शोजत जगदाधार॥ चिदानंद प्रनु अब मोदे तारो, जिम तारो निज नार॥
रूडो० ॥३॥ ॥पद पंचावनमुराग सोयणी॥ ॥अनुन्नव ज्योति जगी बे, हैये हमारे बे॥ अ ॥
ए आंकणी॥ कुमताकुटिल कदा अब करिहा, सुमता हमारी संगी॥
अ०॥१॥
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