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(३०६) मोह मिथ्यात निकट नवि आवे, नव परिणत ज्युं पगी ॥
अ०॥२॥ चिदानंद चित्त प्रनुके नजनमें, अनुपम अचल लगी ॥
अ०॥३॥
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॥पद बप्पनमुं॥राग सोयणी॥ ॥सरण तिहारे गही, चंदा प्रजुजी बे॥ स० ॥
ए आंकणी॥
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