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(ए) चंचल जेम पताका अंचल, तेह विगत इण मांदि॥
अनु० ॥२॥ वक्र तुरंग जिम सुलटी शिदा, तज उलटी हु ठगने॥ विषम गति अति याकी साहेब, अतिशयधर कोन जाने।
। प्रनु० ॥३॥ अति जगतियें कहुं हुं तुमथी, तुम बिन कोन न सियाने ॥
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