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(ए) ॥ पद एकावनमुं॥ ॥राग सोरठ गिरनारी॥ ॥ प्रनु मेरो मनमो दटक्यो न माने ॥प्रजु० ॥ए आंकणी॥ बहुत नांत समजायो याकू, चोडेहू अरु गने॥ पण श्म शीखामण कबुरंचक, धारत नवि निज काने ॥
प्रज्जु ॥१॥ बिनमें रुष्ट तुष्ट होय बिनमें, राव रंक बिन मांहि॥
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