________________
( ६ )
अनुभव अनहद तान ॥
जग० ॥ ३ ॥
कर आसन धर शुचि सममुद्रा, यदी गुरुगम ए ज्ञान ॥ अजपा जाप सोदं सु समरनां,
कर अनुभव रस पान ॥
जग० ॥ ४ ॥
च्यातम ध्यान भरत चक्री लह्यो,
नवन आारीसा ज्ञान ॥ चिदानंद शुभ ध्यान जोग जन, पावत पद निरवाणा ॥ जग० ॥५॥
Jain Educationa InternatiBeasonal and Private Usew@nly.jainelibrary.org