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(शणा) चिदानंद प्रनुए विनतिकी, अब तो लाजळे यांनप्रजु
॥पद बावनमुं॥ ॥राग सोरठ मलार॥ ॥ तारो जीराज तारो जी राज, दीनानाथ अब मोदे तारो जी
राज ॥ए आंकणी॥ पूरव पुण्य उदय तुम नेटे, तारण तरण फिदाज॥
दीना ॥१॥
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