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(२७) छादश ते वली सोई रे॥ ते जग मांदे अजनमे कहीयें, करता नवि तस कोई रे॥
ऐसा ॥३॥ मात तात सुत एक दिन जनमे, गेटे बडे कदावे रे॥ मूल तिनोंका सहु जग जाणे, शाखा नेद न पावे रे॥
- ऐसा ॥४॥ जो इणके कुल केरी शाखा, जाणे खोज गमाव रे॥
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