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( २५७)
सकल मुलक ठग खाया ॥
अवधू० ॥ २ ॥
शत्रुराय महाबल जोधा, निज निज सेन सजाये || गुणठाणेमें बांध मोरचे, घेया तुम पुर आये ||
अवधू ॥ ३ ॥
परमादी तूं होय पियारे, परवशता दुःख पावे ॥ गया राज पुर सारथ सैंती,
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