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(२६०) फिर पाग घर आवे॥ अवधू०४ सांजली वचन विवेक मित्तका, बिनमें निज दल जोड्या ॥ चिदानंद एसीरमत रमतां, ब्रह्म बंका गढ तोड्या॥
__ अवधू 0॥५॥ ॥पदपांत्रीशमुं॥राग प्रजाती। ॥ वस्तुगतें वस्तुको लदाण, गुरुगम विण नहीं पावे रे ॥ गुरुगम विन नवि पावे कोज,
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