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(१७) चिदानंद तव पामीयें प्यारे, जवसायरको पार॥ म०॥५॥
॥पद बहुं॥ राग काफीअथवा वेलावल ॥ ॥ अकल कला जगजीवन तेरी
॥ अकल ॥ए आंकणी ॥ अनंत उदधिथी अनंत गुणो
तुज,
झान मदा लघु बुदिज्युं मेरै
॥अकल०॥१॥
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