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(१७) देखो अंतर जोय ॥ म॥२॥ तनता मनता बचनता रे, परपरिणति परिवार ॥ तन मन बचानातीत पीयारे, निज सत्ता सुखकार ॥मण्॥३॥ अंतर शुक्ष स्वनावमें रे, नदी विनाव लवलेश। ज्रम आरोपित खदायी प्यारे, हंसा सहत कलेश॥म॥४॥ अंतर्गत निद, गदी रे, कायाथी व्यवहार॥
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