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(१एए) नय अरु नंग निखेप विचारत, पूरवधर थाके गुण देरी॥ विकल्प करत थाग नवि पाये, निर्विकल्पतें होत नये री
॥अकल ॥२॥ __ अंतर अनुनव विनुं तुव पदमें,
युक्ति नहीं कोन घटत अनेरी॥ चिदानंद प्रजुकरी किरपा अब, दीजे ते रस रोक नले री
॥ अकल०॥३॥
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