________________
(१०) आतम सुखअनुनव करोप्यारे, नांगेसादि अनादपिया॥॥ सेवककी सजा सूधी रे, दाखी सादेब दाथ॥ तोसी करो विमासणा प्यारे, अम घर आवत नाथापिया०३ मम चित्त चातक घन तुमे रे, इस्यो नाव विचार॥ याचकदानी उन्नय मल्योप्यारे, शोनेनढील लगारपिया ॥४॥ चिदानंद प्रनु चित्त गमी रे,
Jain Educationa Internatibosonal and Private Usev@nly.jainelibrary.org