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(१७) सब फूलनको वासानणकार सब कलियनको रस तुम लीनो, सो क्यूं जाय निरासी॥ ॥
कि॥२॥ आनंदघनप्रनुतुमारे मिलनकु, जाय करवत ल्यूं कासी॥ना
कि० ॥३॥ ॥पदएकसो सातमुंगरागवसंत॥ ॥ तुम ज्ञान विनो फूली बसंत, मन मधुकरही सुखसों रसंत ॥
तु०॥१॥
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