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(१७३) तोय न सोड नराई ॥अवधू०
॥४॥ गगनमंमलमें गाय वीआणी, वसुधा दूध जमाई॥ सन रे सुनो नाइ वलोj व
लोवे तो, तत्त्व अमृत कोइ पाई।अवधू
॥५॥ नहीं जाउंसासरीये ने नहीं जालं
पीयरीये, पीयुजीकी सेज बिगई॥
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