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(१७२) पीयुजीदमारोप्दोढे पारणीएतो, में हुंकुलावनहारी॥अवधूश नहीं हुं परणी नहीं हुं कुंवारी, पुत्र जणावनदारी॥ काली दाढीको में कोई नहीं
गेड्यो तो, हजुए हुँ बाल कुंवारी॥अवधू
॥३॥ अढी छीपमें खाट खटली, गगन उशीकुं तलाई॥ धरतीको छेडो आनकी पीगेडी,
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