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प्रागम पायक तोल दो ॥ वसे ०२ दृढ विशवास वितागरो, सुविनोदी व्यवहार हो ॥ वसे मित्र वैराग विदमे नहीं, क्रीमा सुरति अपार दो ॥ वसे 0
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नावना बार नदी वढे, समता नीर गंजीर दो ॥वसे ॥ ध्यान चदिवचो जो रहे, समपन नाव समीरदो ॥ वसे ०४ नचालो नगरी नहीं,
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