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(१४१) स्वपरकू निस्तारो॥चे ॥४॥
पद ब्याशीमुंरागसूरति टोड। ॥प्रनु तो सम अवर न को
___ खलकमें, दरि दर ब्रह्मा विगूते सोतो, मदनजीत्योतेंपलकम।प्र ज्यों जल जगमें अगन बूजावत, वडवानल सो पीये पलकमें॥ आनंदघन प्रजु वामा रे नंदन,
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