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निश्चय स्वलक्षण अवलंबी, प्रज्ञा बैनी निदारो॥ इद बैनी मध्यपाती उविधा, करे जड चेतन फारो॥चे॥॥ तस बैनी कर ग्रहीयें जो धन, सो तुम सोहं धारो॥ सोदं जानि दटो तुम मोहं, ब्द है समको वारो॥चे॥३॥ कुलटा कुटिल कुबुदि कुमता, बंडो व्दै निज चारो॥ सुख आनंदपदे तुम बेसी,
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