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(१३४) ॥पद सत्योतेरसुंगरागरामग्री। ॥ हमारी लय लागी प्रनु नाम
॥द०॥ अंब खास अरु गोसल खाने, दरअदालत नहीं कामाद। पंच पचीश पचास हजारी, लाख किरोरी दाम ॥ खाय खरचे दीये विनु जात है,
आनन कर कर श्यामाद॥॥ इनके उनके शिवके न जीउके, उरज रदे विनुं गम ॥
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