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(१३३) इत पकरि लाल बरी करी विवेक
॥ प्यारे॥२॥ उत शठता माया मान डुंब, इत रुजुता मृता जानो कुटुंब
॥प्यारे ॥३॥ उत आसा तृष्णा लोन कोह, इत शांत दांत संतोष सोद
॥प्यारे०४॥ उत कला कलंकी पाप व्याप, श्त खेले आनंदघन नूप आप
॥प्यारे ॥५॥
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