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( १९७) करशे करम कान सो कहियें, महादेव निर्वाणरी॥रा॥३॥ परसे रूप पारस सो कहिये, ब्रह्म चिह्न सो बम री॥ इह विधसाधोआपआनंदघन, चेतनमय निःकर्म रीरा॥
पद अडसठमुराग आशावरी। ॥ साधुसंगति बिनु कैसे पैयें, परम मदारस धामरी॥ए आं
कणी॥
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