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(१९७) कोटि उपाय करे जो बौरो, अनुनवकथा विश्रामरीसाधु०
॥॥ शीतल सफल संत सुरपादप, सेवै सदा सुगंरी॥ वंबित फले टले अनवंबित, नवसंताप बूजारी ॥साधु०
चतुर विरंची विरंजन चाहे, चरणकमल मकरंदरी॥ को हरि नरम विदार दिखावे,
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