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फेर नहीं कीजे ॥ द्वारे रह्यो ढींग दास, अपनो की लीजे ॥ ० ॥ १३ ॥ दासकों सुघारी खेडु, बहुत कदा कढ़ियें || प्रानंदघन परम रीत, नानुंकी निवदियें ॥ ०॥ १४ ॥
॥ पद चोसठमुं ॥ राग वसंत ॥ || अब जागो परमगुरु परमदेव प्यारे,
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