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( १११) मेटहुँ दम तुम बिच नेदार प्रालीलाजनिगोरीगमारीजात, मुदि आन मनावत विविध
नात॥ ०॥३॥ अति पर निर्मूली कुलटी कान, मुनि तुहि मिलन बिच देत हान
॥ ०॥३॥ पति मतवारे और रंग, रमे ममता गणिकाके प्रसंग।
॥ ०॥४॥ जब जड तो जड वास अंत,
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