________________
( १००)
शोभा दइ तुमकूं नाथ, अपनी पत राखी ॥ ० ॥ १०॥ निपट ज्ञानी पापकारी, दास है अपराधी ॥ जानु जो सुधार दो, अब नाथ लाज साधी ॥ श्र० ॥११॥ औरको उपासक हुं, कैसें कोइ उधारुं ॥ दुविधा यह राखो मत, या वरी विचारुं ॥ ० ॥ १२ ॥ गइ सो तो गइ नाथ,
Jain Educationa InternatiBeasonal and Private Usev@nly.jainelibrary.org