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( १०८ )
परम लाभ पायो ॥ एरि पतितके उधारन तुम, कढिसो पीवत मामी ॥ मोसुं तुम कब उधारो,
० ॥ ७ ॥
क्रूर कुटिल कामी ॥ ० ॥ ८ ॥ और पतित केइ उधारे,
करणी बिनुं करता ॥ एक काही नानं लेनं, जूठे बिरुद धरता ॥ ० ॥ ९ ॥ करनी करी पार नए, बढ़ोत निगम साखी ॥
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