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(१७) विधिनिषेध नाटक धरी, नेद आठ गयो॥ भाषा षट् वेद चार, सांग शु६ पढायो॥७॥५॥ तुमसें गजराज पाय, गर्दन चढी धायो॥ पायस सुग्रहका विसारी, नीख नाज खायो॥७॥६॥ लीलालु इटुक नचाय, कदोजु दास आयो । रोमरोम पुलकित हुँ,
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