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(१०६) सुत सुता कहायो॥ नाइ कहुँ लगिनी कडं, मित्र शत्रु नायो॥७॥३॥ रमणी कहुं रमण कहुँ, राज रज जतायो॥ सेवकपति इंद चंद, कीट नुंग गायो॥5॥३॥ कामी कहुं नामी कहूं, रोग जोग मायो॥ निशपतिधर देद गेद धरी, विविध विध धरायो॥०॥४॥
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