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(१०५) अनुन्नव बात बनायकें. कदे जैसी नावे दो॥ समता टुक धीरज धरे, आनंदघन आवे दो॥पी०॥६॥
॥पद त्रेसठमुं॥ राग मारु॥ ॥व्रजनाथसें सुनाथ विण, दाथो हाथ विकायो॥ विचकों को जनकृपाल, सरन नजर नायो॥७॥१॥ जननी कहुँ जनक कहुँ,
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